ख़ामोशी
खामोशी कहतीं अक्सर ।
लिखता मिटता सा अक्षर ।
सजकर रात सुहाने तारों से ,
चँदा आँख चुराता अक्सर ।
देख रहा वो आँख मिचौली ,
दूर छिपा बैठा नभ दिनकर ।
चाहत में झिलमिल तारो की,
आ जाता वो अक्सर ।
दिन के उजियारों में भी ,
चाँद नजर आता अक़्सर ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@….