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22 May 2021 · 1 min read

ख़ामोशियाँ और बहरापन

मैंने बहुत बुलाया
पर तुमने सुना ही नहीं
मैंने सोचा अब मेरा खामोश होना ही बेहतर है
पर मेरी खामोशियाँ तुम्हे बुलाती रहीं
मैं शायद ये भूल गयी की
तुम मेरी खामोशियाँ क्या सुनोगे
तुम तो एक बहरे हो
तुम्हें तो मेरी तमाम चीखें भी न सुनाई दी |

द्वारा – नेहा ‘आज़ाद’

Language: Hindi
1 Like · 4 Comments · 577 Views
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