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5 Nov 2021 · 1 min read

ख़ाइफ़ है क्यों फ़स्ले बहारांँ, मैं भी सोचूँ तू भी सोच

ख़ाइफ़ है क्यों फ़स्ले बहारांँ, मैं भी सोचूँ तू भी सोच
फूल हैं गोया ख़ार बदामाँ, मैं भी सोचूँ तू भी सोच

किसने है दीवार उठाई आज हमारे आँगन में
किसने किया इस घर को बयाबाँ, मैं भी सोचूंँ तू भी सोच

अपने ही हाथों से जिसने ख़िरमन अपना ख़ाक किया
क्यों इतना मजबूर है दहक़ाँ, मैं भी सोचूँ तू भी सोच

नाज़ो अदा ये शोख़ नज़ाकत दिल को हैं मरग़ूब मगर
फिर क्यों है ये चश्म हिरासाँ, मैं भी सोचूँ तू भी सोच

अपने – अपने अहद में आसी थे दोनो मग़रूर बहुत
आज हैं दोनो ख़ुद पे पशेमाँ, मैं भी सोचूँ तू भी सोच
______________________
सरफ़राज़ अहमद आसी यूसुफपुरी

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