ख़बर ~~
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उस गहन स्याह अंधकार में,
मेघ छाए थे घनघोर,आकाश में,
गिरी गाज कौंधा वो ग्राम,
दिखा रौशनी में एक इंसान,
उस गीली मिट्टी में आती,
उसके कदमों की आवाज़,
कुछ मायूस, कुछ उदास सी थी,
उसकी वो बेसुध सी चाल,
पगडंडी के कीचड़ से सना हुआ था,
वो आज गेंहू की बाली सा झुका हुआ था,
पहुँचा बरगद के पेड़ के पास,
झूल गया रस्सी से ,बची ना कोई आस,
उसके अश्रुओं के समक्ष वर्षा क्षीण हो गयी थी,
दर्द,कर्ज़, दरिद्रता सब,खेतों में विलीन हो गयी थी,
मांसहीन था उसका शरीर,बस हड्डियां थीं झांकती,
पेट उसका धंसा हुआ था,भूख से अंतड़िया थीं कांपती,
सुबह देखा परिवार वालों ने जब ,हर कोई रोया,
रोया था वो बाप आज जिसने बेटे को था खोया,
कहाँ से आएगा पैसा अब,कहाँ से आएगा खाना,
कैसे पलेंगे बच्चे अब तो, छोड़ दी सारी आशा,
आज फांसी पर लटक रहा था, इस देश का ‘भगवान’,
और ख़बर थी चहुँओर कि फिर से, मर गया एक किसान ।
©ऋषि सिंह “गूंज”
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