ख़त का जवाब आने दो
जिंदगी क्या है ये लब्बोलुआब आने दो
बचपने में लिखे ख़त का जवाब आने दो
दूज के चाँद को बढ़ने दो पूर्णमासी तक
हुस्न निखरेगा ये इस पर शवाब आने दो
हाँ मैं बतलाऊँगा तासीर इश्क की लेकिन
मेरे हाथों में भी कोई गुलाब आने दो
करके जाऊँगा बेनकाब सबको शिद्दत से
छप के बाज़ार में मेरी किताब आने दो
दोस्त हट जाओ राह से है इल्तिजा मेरी
मेरे नसीब में कुछ तो ख़राब आने दो
चाय,कॉफ़ी में दही,दूध में मजा क्या है
नाश्ते में मिरे अब तो शराब आने दो