ॐ
ॐ
अपनों से अपना जुड़े, बाहर का जुड़े ना कोई,
एक थैले में रखने से, लौकी तोरई ना होय।।
सब के साथ प्रेम रखो, नफरत करो ना कोई,
बिन तेल मसाले बिना, सब्जी ना स्वाद होई ।।
जितना ऊपर उठना है, उतना खुला आकाश,
जुड़े रहो जमीन से, बरना गिरोगे धड़ाम ।।
जितना बड़ा दरख़्त है, उसकी उतनी गहरी जड़,
आँधी डाली पत्ते तोड़ दे, फिर फल जाएगा कल ।।
ऊँचा उठना सरल नहीं, ऊपर उड़े बिरला कोई,
लालच ना छोड़े बिना, बाज धरती पर गिरता रेही ।।
prAstya…….(प्रशांत सोलंकी)