ॐ् श्राद्ध ॐ
पन्द्रह दिनों की श्राद्ध,
आपको दिलादू याद।
जिन्दों को नीर नहीं,
पूरखो को खीर।
पखवाड़े भर खाते पुड़ी खीरे,
कैसे रखूं मन में धीर ।
वृद्ध अवस्था मैं ना करते सेवा,
पंगत में परोसे मिठाई मेवा।
अंधविश्वास में जकडा समाज,
कुरुतियों का बोझ ढो रहे आज।
क्या इस लोक से,
पानी जाएगा परलोक।
जागृति से नाता जोड़ो,
कुर्तियों की जंजीर तोड़ो।
श्रद्धा ही श्राद्ध बना दो,
पुरखों के श्रद्धा के नाम से दो पेड़ लगादो
नारायण अहिरवार अंशु कवि
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश
सेमरी हरचंद होशंगाबाद