ह से हिंदी
ह से हिंदी, उमड़-घुमड़ कर मन की सारी पीर हरे,
होठों पर देकर मुस्कान, अन्तस में वो धीर धरे।।
हिंदी में हैं गीत, छंद, कजरी औ’ दोहे, मुक्तक,
हिंदी स्वर, वर्ण, शब्द सुनें तब नैनन से सुख नीर झरे।।
हिय में मेरे बसे है भाषा, हर दिन, हर पल हिंदी हो,
हिंदी गीत जब गाये प्रीतम, नैनन से प्रेम के तीर चले।।
हिंद देश के लिए जो बैठे, सीना ताने सीमा पर,
हिंदी जिनको प्राणप्रिय, भारत में ऐसे वीर भरे।।
हिंदी से सब करें प्रेम, देश में हों या रहें प्रवासी।
हिंदी भाषा को अपनी, लैला, शीरी या हीर कहे।
हिंदी का जो करे अपमान, वो दिखे ‘कमलिनी’ को बैरी,
ह से हिंदी सबके मुख हो, चाहे केरल या कश्मीर रहे।।
रचयिता–
डॉ नीरजा मेहता ‘कमलिनी’