हज़ल
हज़ल।
भूरे लोग करिया लोग।
तपे हुए है सरिया लोग।।
ज्यादा शान दिखाते अक्सर।
दिखने वाले मरिया लोग।।
बीती बातें सिखलाती हैं।
बने ना दिल से दरिया लोग।।
नकल पश्चिची करते रहते।
बन्दर और बन्दरिया लोग।।
लूट जाने के डर से रखते।
देखो बन्द किबरिया लोग।।
पुण्य कमाने तीरथ करते।
सिर धर पाप पुटरिया लोग।।
महलों की हसरत में खुद ही।
बैठे जला टपरिया लोग।।
सरहद पर सभी कुछ उल्टा।
पूजें वहां सुंगरिया लोग।।
जब जब काम पड़े हमसे तो।
बनते गुड़ की परिया लोग।।
अपनों को ही डमहा लगाने।
तपा रहे है झरिया लोग।।
कुर्सी की चाहत में देखो।
कूदें बने मिदरिया लोग।।
हमसे कहते रहो ठीक से।
टेढ़ी पूँछ पुंगरिया लोग।।
डरते पत्नी से खाते हैं।
बेलन और मुंगरिया लोग।।
लाख भलाई करने पर भी।
मारें विजय बुदरिया लोग।।
विजय बेशर्म गाडरवारा
9424750038