“हक़ीकत”
“कुछ पल पीड़ा के होते,
कुछ पल खूब आनंदित करते,
कुछ पल अपनों के साथ गुज़रते,
कुछ पल अपनो के बिन निकलते,
रोज़ नए दिन के साथ उम्मीदें बढ़ जाती हैं,
आँखें रंग -बिरंगे सपने दिखलाती हैं,
ज़रूरतों की ज़रूरतें रोज़ बढ़ी होतीं हैं,
जब तक जीवन समझ में आता,
अपनी आगवानी में मौत खड़ी होती है,
मौत की आगोश में सबकी पिपासा बुझ जाती,
साँसें,धड़कन,आशा और निराशा रुक जाती “