हौसले जब भी आजमाए हैं
हौसले जब भी आजमाए हैं
आंधियो में दिए जलाए हैं
आज सौदा यहीँ कहीं होगा
खूब दौलत वो साथ लाए हैं
गैर मुल्को में कोई इनका है
जिसके झंडे ये सब उठाए हैं
वो हुनरमन्द अब नही आता
जिसकी कीमत चुका के आए हैं
पी गया वो शराब जितनी थी
बिन पिए हम तो लड़खड़ाए हैं
प्यार तुझसे हुआ इसी खातिर
हमने दुश्मन नए बनाए हैं
ऐक रिश्ता निभा के जिन्दा है
हमने रिश्ते नही निभाए हैं
उसने हर गाम चोट खाई है
जिसके चेहरे में गम के साए हैं
क्या मुहब्बत ने गुल खिलाए हैं
चाँद तारे जमीं पे आए हैं
कोई पहचान ले न हमको भी
आज सूरत बदल के आए हैं
………कवि विजय ………….