हौसला
दिल में बसी कसक को लबों तक आने दो ,
दर्दे दिल ना छुपाओ मा’रिज़ -ए -इज़हार में आओ ,
दर्द दिल में छुपाते-छुपाते कहीं
नासूर ना हो जाए ,
गम में डूबी इस ज़िदगी में जीना कहीं
दुश्वार ना हो जाए ,
जुल्मो तशद्दुद के खिलाफ़ आवाज़ उठाने का
हौसला बनाओ ,
अपनी हस्ती को पहचानो , अपने सोए हुए
ज़मीर को जगाओ ,
वरना , ज़ालिम ज़माने में तेरी हस्ती
सिमटकर रह जाएगी ,
हैवानियत बुलंद हो , शिकस्ता-हिम्मत ज़िंदगी
सिसकती रह जाएगी।