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8 Jun 2021 · 1 min read

हौसला

बुझे हुए दिल के अरमा जगा भी नही सकता
किस के लिए ज़िन्दा हूँ बता भी नही सकता

हौसलो को परवाज़ अपने मैं हरदम चढ़ाता रहा
दिल के जूनून को हरगिज़ मिटा भी नही सकता

वो नादाँ है नादानियाँ उनके फ़ितरत में रही
क्या अब अपने जख़्म छुपा भी नही सकता

सहारा में चलते रहे फ़क्त छाँव के इंतज़ार में
इश्क की प्यास को अब बुझा भी नही सकता

सुना है अदावत पे बड़ा रश्क करते है सब
आशिक़ को अब यादो में बुला भी नही सकता

उनके हिस्से में आये है चार सू अश्क़ के कतरे
किसी के दिल को अब जला भी नही सकता

वो मासूमियत से बदलते है दिलो को अपने
आकिब”हाल-ए-दिल अब बता भी नही सकता

-आकिब जावेद

3 Likes · 2 Comments · 275 Views
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