चांद-औ-सितारे
हमने कभी रब से सहारे नहीं मांगे।
हो बस सुकून वैसे इशारे नहीं मांगे।
कर के कड़ी मेहनत बिताये सभी दिन,
यारों दुआ में सुख – गुजारे नहीं मांगे।
जब भी किया दिल बस उसे देख लेते,
सच है कभी चांद-औ-सितारे नहीं मांगे।
ले नाव सागर में बिना ही किसी पतवार,
आगे बढ़े लेकिन किनारे नहीं मांगे।
हर मोड़ पर चाहत बिकी है “मुसाफिर”,
पर उसने तुमसे हुस्न-नजारे नहीं मांगे।।
रोहताश वर्मा ” मुसाफ़िर “