हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी
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गज़ल-16
हो हमारी या तुम्हारी चल रही है जिंदगी।
सच तो है ये धीरे धीरे जल रही है जिंदगी।
देखते ही देखते आंखों से ओझल होगी ये,
बर्फ़ की सिल्ली हो जैसे गल रही है जिंदगी।
जिंदगी के वास्ते ही छल कपट करते रहे,
सोचिए क्या चैन में इक पल रही है जिंदगी।
ज़िंदगी खुद साथ यारो छोड़ देगी एक दिन,
जिंदगी में आदमी को छल रही है जिंदगी।
प्यार से लबरेज़ होगी, जिंदगी प्रेमी बनो,
प्यार से जो दूर है दल दल रही है जिंदगी।
……….✍️ सत्य कुमार प्रेमी