हो समर्पित जीत तुमको
हो समर्पित जीत तुमको
हार मुझको चाहिए
हार मुझको चाहिए
ये बहाना ही सही
बस प्यार मुझको चाहिए
क्या करूँगा जी के वर्षों
हो विरत तुमसे यहाँ
तृष्णा यदि नीर की हो
अमृत से बुझती है कहाँ
तुम मिलो मुझे जिस घड़ी
पल दो चार ऐसे चाहिए
हो समर्पित जीत तुमको
हार मुझको चाहिए
* देवेश पराशर *