हो मुखर
हो मुखर
कर से काम कर
नेक इरादों से न मुकर
हो मुखर
नित दिन प्रखर
ये अवरोधक दुख लाती है
बाधाओं को पार कर
हो अपार,
सारगर्भित सार
सुखों का सागर कर रहा इंतजार।
बढ़ तू आगे
विध्वंश को मत देख
निर्माता हो निर्माण कर
बाधाओं से मत हार।
सकारात्मकता के हो जाओ साथ।
अपने से मिलाओ हाथ
हिम्मत दो ,संभालो गिरते हुए कर्णधारों को।
तू शूरवीर है आगे बढ़
सब कहेंगे हम देंगे साथ
स्वर्णिम न कभी रुका है न रुकेगा
सूरज सा चमकेगा
हर एक में प्रतिभा चमकेगा।
कविराज
संतोष कुमार मिरी
नवा रायपुर छत्तीसगढ़