हो न हो हम में कहीं अमरत्व तो है।
हो न हो हम में कहीं अमरत्व तो है।
हमने रखा है हलाहल को गले में,
वासुकी को हमने है रस्सी बनाया,
सामने न इंद्र के घुटने टिके हैं,
हमने इक उंगली पे गोवर्धन उठाया,
विद्व जन मानव को छन भंगुर हैं कहते,
सदियों से हम लड़ रहे हैं तत्व तो है,
हो न हो हम में कहीं अमरत्व तो है।
शास्त्र कहते हैं कि हैं हनुमान अब भी,
अश्वत्थामा दाग लेकर घूमता है,
समय ने जिनको मिटाया है धरा से
आज भी इंसान उनको पूजता है,
सिर्फ मिट्टी से नहीं आकार पाया
उससे भी बढ़कर कहीं कुछ सत्व तो है,
हो न हो हम में कहीं अमरत्व तो है।
जो युगों पहले हुआ था घटित जग में,
आज भी उसकी ध्वनि है गूंजती है,
आज की दुनिया भी वे घटनाएं लेकर,
नीति नैतिकता के नियम गूंधती है,
सहस्त्र वर्षों में भी समयोचित अभी तक,
इस कथा में ठोस ऐसा तथ्य तो है,
हो न हो हम में कहीं अमरत्व तो है।
कुमार कलहंस।