हो गए तुम सत्ता
सिलसिला वर्षों से पुराना रहा
कहानी की तरह मैं कहता रहा
तुम तूफ़ानों की तरह तो आए
पेड़ों सा झुकता मैं टूटता रहा
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कुदरत का कैसा करिश्मा रहा
तुम सदा आगे रहे मैं पीछे रहा
दौर जब-जब तबाही का आया
तब-तब तुम पीछे मैं आगे रहा
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ये बीमारी नहीं दवा का दोष है
दवा देता रहा ये दर्द बढ़ता रहा
है बस इतना रहा जिंदगी में मेरी
भाग्य को मैं तो कोसता ही रहा
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ये नज़रे खुली की खुली ही रही
लूटता माली मेरे चमन को रहा
ये असंभव संभव तभी हो सका
हो गए तुम सत्ता मैं जनता रहा
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तुम रहे तो खड़े अडिग चट्टान से
मैं मिट्टी सा सदा भुरभुरा ही रहा
देखता रह गया बस तुम्हारी तरफ
सितम अगला इंतजार करता रहा
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चलते-चलते वो मंजिलें मिल गईं
हैं लौटना जहां से न मुमकिन रहा
नदी सा तुम्हारे बीच का फासला
तुम पहला मैं दूसरा किनारा रहा
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तुम हकदार रहे ज्ञान विज्ञान के
मेरे कब्ज़े में सदा हास्यास्पद रहा
है रहा दावा तुम्हारा असरदार तो
हमेशा मैं तो विवादास्पद ही रहा
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-रामचन्द्र दीक्षित ‘अशोक’