हो गए जो
हो गए जो पत्थर के गम सहते – सहते ।
मौन हो गए निज गाथा कहते कहते ।।
उनकी पीड़ा की गहराई जाने कौन ,
जिनके ऑंसू सूख गए बहते – बहते …
बाहर हँसी , उदासी जिनके अंदर है ।
दुख दर्दों का दिल में बसा समंदर है ।।
खुशियों के पल आये जीवन में ऐंसे ,
जैंसे उड़े पखेरू सब रहते – रहते …
शांत नदी है गहराई की कहाँ थाह है ?
बीहड़ में भटकी दुर्गम सी कठिन राह है ।।
धाराओं से पीछे छूटे मधुर किनारे ,
शेष रही जिनके दामन गहते – गहते …
जिनने सपने बुनकर ऊंचे महल गढ़े ।
आशाओं के दीप लिए जो शिखर चढ़े ।।
झंझावाती बे मौसम की बरसातों में ,
एक एक कर बचे न कुछ ढहते ढहते…