हो अंधेरा गहरा
हो अंधेरा गहरा
हर तरफ ख़ामोशी हो
तुम हो, मैं हूँ
रात अमावस की
भी नूरानी हो
तुम बैठो नजदीक मेरे
और बातेँ नयी पुरानी हों
कुछ हों मेरे शिकवे,
कुछ शिकायत तुम्हारी हों
मेरे हाथों में हो हाथ तेरा
तेरे काधों पर हो सर मेरा
कुछ चुहल, कुछ मनमानी हों
यूँ तो है ख्वाब जागती आँखों का
जो सच हो, तो ग़ज़ब कहानी हो
हिमांशु Kulshrestha