होली
बसंत ऋतु आते ही
प्रकृति का उत्सव छाया
धरती रंग बिरंगी हो आई
नई कलियां नई फूल ले आई
प्रकृति नए रंगों से सज आयी
धरा दुल्हन सी लगती
चलो हम भी इस उत्सव को
प्रकृति सा होली का उत्सव मनाये
अपने दुख भरे सफेद कपड़ो में
खुशी के रंग डाल आये
अपनी आत्मा के रंगों से रंग आए
कभी सूर्यास्त के सारे रंग दिल में भर आए
कभी उन्हें इंद्रधनुष सा आकाश में सजाये
कुछ स्वरों मे गाए नाचे और मुस्कुराए
प्यार के रंग से सारा तन रंग आए
प्रेम का श्रृंगार कर अपने मन को सजाये
चलो आज होली का त्यौहार मन से मनाये
ताल मृदंग मजीरा मन में बजाये
जिंदगी के सारे गम दिल से हटाए
प्रेम के रंग में डूब जाए
संसार के सारे झूठे बेरंग रंग
अपने दिलों से हटाए
प्रेम रंगों से ही दिल को सजाये
कृत्रिम रंगों की होली अब ना मनाये
प्यार के रंगों में डूब जाये
काम क्रोध द्वेष ईर्ष्या की होली जलाएं
दिल में जमीन नफरतों को
प्रेम साबुन लगा छुड़ाए
अपने प्रेम का गुलाबी गुलाल
हर के गालों पर लगाये मुस्कुराए
प्रकृति की तरह ही
होली का त्योहार मनाये
मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह (२५-३-२४)
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