होली
“होली”
गांव के चौराहे पर आज खूब भीड़ थी होली का त्यौहार जो था, एक ओर होलिका दहन के आग की लपटें आसमान छूने को ऊपर उठ रही थी तो दूसरी ओर गांव के लोग खुशी से एक दूसरे को रंग गुलाल लगाकर होली की बधाई दे रहे थे। होली के रंगों से चारों ओर माहौल खुशियों भरा था कि तभी वहां एक बड़ी गाड़ी आकर रूकी और सभी का ध्यान उस ओर गया।
मुखिया जी बोले अरे रामू बेटा देख जरा त्यौहार वाले दिन भला ये कौन आए हैं हमारे गांव में……जी मुखिया जी बोलकर रामू गाड़ी की ओर लपका। गाड़ी के ड्राइवर के पास जाकर उसने बात की और उसका सिर झुक गया चेहरे पर खुशी के जो भाव थे वह एकाएक गायब हो गया। वो बड़े शांत कदमों से सर झुकाए चलता हुआ मुखिया जी के पास आया और उनके कानों में कुछ कहा जिसे सुनकर मुखिया जी भी सकपकाए और कुछ लोगों को लेकर उस गाड़ी के पास गए।
कुछ पल पहले ही जहां सभी गांववाले होली की खुशियां मनाते झूम रहे थे अब वो शांत थे और कुछ लोगों के साथ मुखिया जी गाड़ी के नजदीक जाकर बोले मोहन दो चार लोग हाथ लगाकर गाड़ी से उतारो भाई उसे। कोई समझ नहीं पा रहा था कि मुखिया जी किसे उतारने बोले, फिर भी चार लोग ने मिलकर गाड़ी में से एक लंबे बक्से नुमा भारी चीज को उतारा।
उसे खोलकर देखा तो गांववालों के होश उड़ गए और सभी की आंखों से आंसू बहने लगे, ये तो उनके गांव का रतन था जो कुछ साल पहले ही सेना में भर्ती हुआ था। कहने को वो बुधसिंह का बेटा था लेकिन गांववालों को उस पर नाज़ था और सभी उसे अपना बेटा मानते थे। आज उसकी लाश अपने सामने आई देखकर पूरे गांव में शोक की लहर दौड़ गई और हर आंख आज नम थी।
मुखिया जी ने साथ आए सेना के जवान से पूछा ये सब कैसे हुआ भाई…..तो उसने बताया बाबूजी आपका बेटा भारत मां की रक्षा करने सीमा पर तैनात था और होली की रात को दुश्मन देश की ओर से कुछ आतंकवादियों ने बॉर्डर पर घुसपैठ की कोशिश की जिसे देखकर उसने बड़ी बहादुरी से उन्हें रोका और जब तक साथी फौजियों का दल नहीं पहुंचा तब तक उन्हें अकेले रोक कर रखा।
एक तरफ पूरा देश रंगों की होली मना रहा था और उधर सीमा पर ये बेचारा भारत मां की रक्षा करते अपने खून की होली खेल रहा था इसकी अदम्य वीरता से दुश्मनों की घुसपैठ करके बड़ा हमला करने की योजना विफल हो गई। धन्य है वो मां बाप और इस गांव की मिट्टी जिसने इस जैसे बहादुर को जन्म दिया है।
✍️ मुकेश कुमार सोनकर”सोनकरजी”
भाठागांव, रायपुर छत्तीसगढ़