होली
अब बात कहां वो होली में
हफ्तों पहले हर आंगन में
दिखती तैयारी होली में,
हिंदु मुस्लिम का भेद मिटा
मिलते थे तन मन होली में,
गांवों की होली शहर चली
अब बात कहां वह होली में
हल्दी के हाथ लिए भाभी
जब छाप लगाती पंजे की
मीठी सी गाली अधरों पर
और हंसी ठिठोली सखियों की
भाभी की आंख मिचौली से
देवर शर्माते होली में
अब न रहे वो कुंवर कन्हैया
न रही ठिठोली होली में
तन फागुन जैसा भीगा सा
गालों पर प्रीत का सुर्ख रंग
साजन सजनी की लुका-छुपी
मन वासंती जैसे मृदंग
टेसु पलाश के रंग कहां
न इत्र गुलाल अब होली में
अब बात कहां वह होली में