होली
होली
होली के हुड़दंग में , शर्म स्वयं बेशर्म ।
देवर संग भाभी हुईं, नर्म धूप में गर्म।।
नर्म धूप में गर्म ,रही न लज्जा बिल्कुल।
ज्यूँ ज्यूँ चढ़े गुलाल , खेलते फिर से मिलजुल।
कह पाण्डे कविराय , नयन से चलती गोली ।
घायल देवर आज , मस्त हो खेले होली ।।
सतीश पाण्डेय