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6 Mar 2018 · 1 min read

होली

दोहे

बढ़ा उँगलियाँ रश्मि की, ऊषा मले गुलाल।
सतरंगी क्षिति के हुए, मटमैले अब गाल।

मदमाता मौसम हुआ, पी वासंती भंग।
कुदरत ने अँगडाई ले, किये शिथिल सब अंग।

लिये नेह का थाल कर, ले अक्षत औ रंग।
होली का स्वागत करे, सहचर साथ अनंग।

आ रंगों के व्याज में, जोड़ें मन के तार।
पवन वसंती प्रीति का, ले आयी उपहार।

फगुनाहट कहने लगी, पहने पीत दुकूल।
पिया फाग की आड़ में, हो जाओ अनुकूल।

मन तरुवर की शाख पर, खिलते प्रेम प्रसून।
जन जन को रंगीन कर, करें सुखद निर्न्यून।

डाल डाल खग वृन्द मृदु, गाते स्वागत गान।
आ होली नव साज में, बजा मृदंगी तान।

क्षिति से अंबर तक नशा, रंग अबीर विकीर्ण।
विरहावधि यह देख कर , हुई बहुत संकीर्ण।

अलि कलियों से कह गया, कुछ मन के हालात।
वो खेलें यदि संग में, बन जाएगी बात।

नशा हुआ यह भांग का, या है उनका रंग।
पुरवाई बतला जरा , बदल रहा क्यों ढंग।

अधर अधर मुस्कान है, हाथ हाथ में थाल।
प्रेम रंग में डूबकर, होते हृदय निहाल।

अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ,मुरैना (म.प्र.)
मो.- 8827040078

Language: Hindi
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