*होली*
समां रंगीन होली का बड़ा दिलकश नज़ारा है
ज़माने भर की’ खुशियों का निराला सा पिटारा है
बड़े छोटे यहाँ सारे सभी हुड़दंग में डूबे
गिले शिकवे सभी भूले लगाया रंग प्यारा है
न सपने कल के’हम देखें यही पैगाम होली का
मिला जो आज है हमको फ़कत वो ही हमारा है
अनोखा सा असर देखा बुजुर्गो की दुआओं में
फ़लक पर चाँद जो चमके ज़मीं पर वो उतारा है
सदा ही प्रेम से रहना मुसाफ़िर ये कहे सुन लो
रहोगे गर जो’ मिल जुल कर बुलंदी पर सितारा है
धर्मेन्द्र अरोड़ा “मुसाफ़िर”