होली–होली वही जो कि खेलै कन्हैया
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होली वही जो कि खेलै कन्हैया वृंदावन की गलियों में, प्रभु।
अरु लाल गुलाल वही जो पलाश ने दी अलियों को मान प्रभु।
अरे गीत वही जो कि गाये फिरे विरहिन अद्भुद शृंगार किए।
अरे थाप वही जो गुँजे मन में प्रिय को प्रिय का मनुहार किए।
सब नेह धरे घर-आँगन में गलियन में बहु स्नेह लुटाते फिरे।
होली वही जो बनाके सखी दु:ख-दर्द बरस का मिटाते चले।
होली वही जो विछोह मिटाये तन,मन का व जीवन का प्रभु।
होली वही जो कि खेलै कन्हैया वृंदावन की गलियों में, प्रभु।
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