होली – महत्व एवं वैज्ञानिकता
सर्वप्रथम साहित्य पीडिया परिवार के रचनाकारों, हमारे परिवार जनों, गुरुजनों, इष्ट मित्रों, एवं हमारे समस्त विद्यार्थियों को होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ
अब बात करते हैं होली की —-
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। यह प्रमुखता से भारत के अलावा कई अन्य देशों जिनमें अल्पसंख्यक हिन्दू रहते हैं वहाँ भी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। यहाँ तक कि हमारे पड़ोसी मुल्क पाक में भी हमारे हिन्दू भाई इसे धूम-धाम से मनाते हैं, पहले पाक में इस हिन्दू त्यौहार के लिए सरकारी अवकाश का कोई प्रावधान नहीं था, पर अब शायद पिछले दो वर्षों से हिन्दू जनभावनाओं को ध्यान में रखते हुए इस दिन सरकारी अवकाश रहता है ।
अब फिर आते हैं त्योहार की बात पर —
पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। दूसरे दिन रंगोत्सव होता है, जिसमें लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि डालते हैं, और पूरा शरीर रंग – गुलाल से सराबोर हो जाता है, एक – दूसरे को पहचानना मुश्किल हो जाता है, और मुश्किल भी क्यों न हो रंगोत्सव जो है !!! परन्तु रंग खेलने का मजा तब किरकिरा
हो जाता है जब लोग रंग डालने के नाम पर न जाने क्या क्या डालते हैं ,
जैसे कि -काला जला हुआ तेल, ग्रीस, कीचड़ युक्त रंग इत्यादि इत्यादि ।
अरे हाँ होली की अच्छाई की बात कर रहे थे , न जाने किन बातों के चक्कर में पड़ गए —
इस दिन लोग ढोल बजा कर होली के गीत गाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाते हैं , इस दिन प्रेमियों को भी गजब का चांस मिलता है, नहीं समझे अरे भाई अब हर बात थोड़ी न लिखेंगे, कुछ बातों के लिए आप हमसे ज्यादा समझदार हैं ।
समाज का यह मानना है , कि इस दिन लोग अपनी पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। पर मेरी सोंच थोड़ी अलग है, वो ये है कि —- जब समय होता है—-एक – दूसरे के घर जाकर होली मिलने का, गले मिलने का, गुझिया पापड़ खाने का तब हम – सब ये सोंचकर विरोधी के घर नहीं जाते कि वो हमारे यहाँ नहीं आया, हम आसरा देखते रहते हैं कि पहले वो आये फिर हम जायेंगे,
अरे भाई इतना क्या सोंचना किसी न किसी को पहल करनी ही पड़ेगी,
और ये पहल आज ही हो जाए तो सोने पे सुहागा, क्योंकि आज जैसा शुभ समय पूरे वर्ष नहीं आता ।
एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है।
हमारे यहाँ आखत (जौं) दोपहर बाद डाले जाते हैं , और वहाँ पर गाँव के बड़े – बुजुर्ग इकट्ठे होकर होली गीत गाते हैं वो भी साज – बाज के साथ, सभी आनन्द विभोर हो नाच उठते हैं ।
इसके बाद स्वयं स्नान करते हैं और पशुओं को भी स्नान करवाते हैं ।
इसके बाद नए कपड़े पहनकर नया संवत् सुनने जाते हैं । और वहीं से
लोग होली मिलना शुरू कर देते हैं , एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयाँ खिलाते हैं ।
अब बात करते हैं वैज्ञानिकता की —-
जैसा कि आप सभी लोग जानते हैं कि जिस समय ये होली पड़ती है यह वो समय है जिसमें सर्दी का अंत हो रहा होता है और ग्रीष्मकाल का आगमन हो रहा होता है , और शारीरिक गतिविधियों में आलस्य सा छाने लगता है , एवं इस समय वातावरण में रोगकारक बैक्टीरिया /वायरस की अधिकता भी हो जाती है , होलिका दहन में उत्पन्न ताप
सम्पूर्ण वातावरण ऊष्मित कर देता है और वातावरण में मौजूद रोगकारक नष्ट होने लगते हैं जो हमारे लिए लाभप्रद है ।
रंगोत्सव के दिन हम – सब दौड़ – दौड़ के रंग लगाते हैं, जोर – जोर से गाते हैं , नाचते हैं , मनपसन्द म्यूजिक बजाते हैं , गले मिलते हैं, जिससे हमें खुशी का आभास होता है और नयी ऊर्जा का संचार होता है ।
चारों तरफ हरियाली ही हरियाली होती है, पुष्पों के पीलाम्बर क्षितिज तक तितलियाँ मड़राती हैं, भँवरे गुनगुनाते हैं, सरसों के फूल इतराते हैं,
गेहूँ की बालियाँ इठलाती हैं, आम बौरा जाता है, कोयल कुहू -कुहू करते हुये पिय से मिलन को तत्पर हो जाती है, बाबा भी देवर हो जाते हैं, सम्पूर्ण वातावरण फाग रस से परिपूर्ण हो जाता है ।
और मन आनन्द विभोर हो बोलता है —–
होली माता की जय !!!
— आनन्द कुमार
हरदोई (उत्तर प्रदेश)