तुझ संग प्रीत
“तुझ संग प्रीत”( गीत समीक्षार्थ)
(नायिका)
एक प्रीत जगाई थी मन में..
जब ऑख मिलाई थी मन में…
तब लगन लगाई थी मन में..
थोड़ा अकुलाई थी मन में…..
तेरे दर्शन को प्यासीथी..
.पर ऑखों में तो उदासी थी…
न जाने तुम कब आवोगे…
.मुझको फिरसे अपनाओगे.
संवाद का अन्तर्रद्वन्द हुआ
मन का मन से फिर मिलन हुआ..
कितने ही राज़ उठे दिल से
इस दिल का दिल से मिलन हुआ..
बरबस ही मन खिंच जाता है
.जब याद कोई आ जाता है..
……….याद आती हैं सारी बातें..
………मीठी प्यारी सी मुलाकातें…
जब सारी रात यूं जगते थे..
ऑखों में बस तुम ही तुम थे…
दिन में सपनों का यूं आ जाना..
ऑखों में समां सा छा जाना….
…(नायक)…
जब रात अंधेरी बीतेगी..
जब कलियॉ बाग में फूलेंगी
जब उनपर भौंरे झमेंगें..
जब शान्त सरोवर के तीरे……
पंछी के कलरव गूंजेंगें..
जब बसन्त रिःतु धीरे -धीरे
तन मन में मदिरा घोलेगी..
तब तुम सर पर चुनरी डाले..
मेरी कुटिया के ऑगन में.
अपनी आभा फैला जाना..
…..जीवन का रस लेने के लिये..
जीवन मधु पीने के लिये
मेरी सजनी रग -रग में तुम
अब मेरी प्यास बुझा जाना..(प्यार तो ईश्वर का वरदान है)
कुमुद श्रीवास्तव वर्मा कुमुदिनी