कन्दर्प की भेंट
आज फिर कन्दर्प ने
अपने अनङ्ग रूप का
धरा पर विस्तार किया।
सन्धि कर ऋतुराज से
स्वर्ग का सौन्दर्य सब
भूमि पर उतार दिया ।
आज सब वातावरण
सोम रस सन्नद्ध है ।
चर अचर व जीव सब
आज मदन रूप है ।
मदन आयुध कर गहे
सब सुखों को जीतते
होलिका की अग्नि में
इस जगत के सर्व नर
प्रदक्षिणा है कर रहे ।
मदन के उपहार से
सब बिसरे मन त्रास है ।
दिख रहा हर एक मन में
आनन्द व उल्लास है ।
आनन्द का गुलाल ये
हर तन को हम लगायेंगे ।
ये खुशी के आभरण
हर मन को हम पहनायेंगे ।