होली के रंग
राघव और रहीम कि मित्रता की जोड़ी पूरे जवार में मशहूर आज भी है राघव के पिता शीलभद्र धर्म भीरू संवेदन शील आचार विचार से विशुद्ध सनातन पण्डित जाती से ब्राह्मण थे ही कर्म से भी ब्रम्ह के साक्षात वेत्ता थे।
बेटा राघव एक मात्र संतान था जिसको लेकर शीलभद्र ने बहुत अरमान अभिलाषाएं पाल रखी थी और अपनी अभिलाषा के अनुरूप राघव को शिक्षा आदि की व्यवस्थाएं अपनी क्षमता से भी अधिक कर रखी थी।
राघव भी पिता के अरमानों पर मर मिटने वाली संतान थी रहीम के अब्बू खांटी इस्लामिक विचारधारा के पोषक थे पांच वक्त का नमाज़ पढ़ना और पेशे से चिक थे।
शीलभद्र एव रियासत अली एक दूसरे का बहुत सम्मान करते थे मगर उसके व्यवसाय से घृणा करते बार बार यही कहते रियासत मिंया चिक का व्यवसाय छोड़ कर कोई और व्यवसाय कर लो रियासत चूंकि चिक के व्यवसाय में रम चुके थे अतः उन्हें कोई दूसरा व्यवसाय जमता नही सिर्फ व्यवसाय के ही कारण शीलभद्र रियासत कि छाया पड़ जाने के बाद तुरंत स्नान करते और रियासत को बार बार मना करते कि वह उनकी छाया से भी दूर रहे ।
रियासत हर बार यही कहते पण्डित जी मैं मानो तो आपके पुराणों का सजन कसाई हूँ जो परिवार की जीविकोपार्जन के लिए पशुवध अवश्य करता है किंतु होता परवादिगार का खिदमतगार ही है।
शीलभद्र को बराबर यह अभिमान रहता कि वह सबसे बड़े विद्वान एव धर्म वेत्ता है ।
होली का दिन था पूरा गांव धर्म जाती के भेद भवों को मिटा कर एक दूसरे से होली खेल रहा था बुजुर्ग ,नौवजवान बच्चों से कहते कि रियासत यदि पण्डित शील भद्र को रंग लगा दे तो समझिए असली होली है नही तो होली तो हर वर्ष आती है चली जाती है।
बच्चों ने जाकर रियासत को ललकारना शुरू किया कहा जाने कितने बकरे काट दिए होंगे कभी कोई संकोच या हिचक नही हुई होगी लेकिन यदि रियासत मियां पण्डित शीलभद्र को अबीर या रंग लगा दे तो यह समझा जाएगा कि रियासत वास्तव में एक मजबूत इंसान के साथ साथ ख़ुदा परास्त है ।
ख़ुदा के अलावा किसी से नही डरते है बार बार गांव के बच्चों द्वारा रियासत को उकेरने पर रियासत को रहा नही गया उन्होंने सोचा कि अगर पण्डित शील भद्र को मेरे रंग लगाने से गांव की होली में नए उल्लास उत्साह का सांचार संम्भवः है तो क्या हर्ज है ?
और बहुत सधे एव गांव भर की आंखों में धूल झोंकते रियासत मिया पण्डित शील भद्र के विल्कुल करीब पहुँचे और बोले पण्डित जी होली मुबारख हो कैसे होली के दिनों सूखे सूखे बैठे हो?
हम सोचा और नही तो अपनी परछाई ही पण्डित जी पर डारी देई पण्डित जी कम से कम नहाईयांन त जरूर पण्डित शील भद्र बोले मियां रियासत तू आज हमारे धर्म भ्रष्ठ कर दिए ह एक त तुरुक दूसर चिक राम राम राम का जमाना आई गइल बा।
शीलभद्र के लिए रियासत अली कि छाया ही बहुत थी उनको जरा भी भान नही था कि रियासत उन्हें रंग भी पोत देंगे मौके की नजाकत देखते हुए रियसत अली ने पण्डित शीलभद्र को इतना रंग दिया कि शील भद्र खुदो के नाई पहिचान पावे अब क्या था? पण्डित शीलभद्र गुस्से से आग बबूला हो गए और बोले रियासत मियां अच्छा नाही किये हैं हम तोहके केतना बार मिन्हा किये है कि तू हमारे परछाई से दूर रह लेकिन तू त आज हर मर्यदा के लांघ गए और आग बबूला होकर रियासत को उल्टा सीधा बोलने लगें रियसत मिया बोले पण्डित जी #छोट मुंह बड़ी बात # आप वास्तविक धर्माचार्य नही है क्योंकि प्रत्येक धर्माचार्य कम से कम एतना जरूर जानत है कि ईश्वर सबमे है वोकरे खातिर जाती पांती धरम के बंधन नाही है तू तबे से धर्मे बूकत हौवें अब त पण्डित शीलभद्र के क्रोध आसमान ही छूने लगा तमतमाते हुये बोले रियासत मिंया तोहके समझे नाही आवत की तू तिनका के आदमी और बात बड़े बड़े करी रहा है #छोट मुंह बड़ बड़ बात करत# लाजों नाही लागत है रियासत बोले पण्डित जी कईसन लाज आज तोहरे खास त्योहार होली है जेमा तोहन पाचन रंग अबीर एक दूसरे को लगावत है अगर हम तोहरे खुशी में शरीक हो गये तो कौन सी आफत का पहाड़ टूट पड़ा?
पण्डित शीलभद्र और मियां रियासत के बीच मामला विगड़ते देख गांव वालो ने मामला नियंत्रण में तो हो गया लेकिन पण्डित शील भद्र के लिए थोड़ी मुश्किल अवश्य हो गयी उन्होंने पंच गव्य ग्रहण कर मन पवित्र किया पुनः बालु गोबर झाँवा से मलकर स्नान किया और एक सप्ताह व्रत रहकर स्वंय को शुद्ध किया।
लेकिन रियसत ने खुद को जोखिम में डालकर अपमानित होकर गांव वालों की होली में नई जान डाल दिया पूरे गांव वालों की होली यादगार बन गयी।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उतर प्रदेश।।