होली के दिन
जा रे पपीहा, जाओ उस देश, जहां पिया जी रहते हैं
देना सही-सही वही संदेश, जो मैं तुम्हें बताऊंगी।
आओ जल्दी से जल्दी, बिना देर, होली आनेवाली है
आओगे जब,तब दिल की बात सहज -सहर्ष बताऊंगी।
रंगों की पिचकारी दबा -दबा, अंग- अंग रंग डालूंगी
रंग दूंगी सतरंगा, इंद्रधनुष- सा तुम्हें मैं बनाऊंगी ।
हरे पीले नीले लाल गुलाबी …रंगों से जी -भर खेलूंगी
गुलाल से भर दूंगी गाल, मलाल जरा भी न कुरूंगी।
अंगना सजाऊंगी, रंगों से नहलाऊंगी, दिल बहलाऊंगी।
गुलाल मलते -मलते, हार कर दिल, निहाल हो जाऊंगी
रख देना अपने होठ, मेरे पंखुरी होठों पर, मनुहार से
सहज सहर्ष स्वत: ही क्षण में सुर्ख लाल मैं हो जाऊंगी।
दिल का कोना कोना भर दूंगी, मीठी- मीठी बातों से मैं
हलुआ, पूरी, पुआ, गोजियाँ तुम्हें मन -भर खिलाऊंगी।
दहीबड़ा खिलाऊंगी, खट्टा- मीठा चटनी भी चटाऊंगी
संतरा का रस और अंगूर का रस भी मैं पिलाऊंगी।
सूरज के अस्त होने के पहले कमल दल बंद हो जाएगी
सूरज के उगने पर काले मुख वाले भौरे को भी रोकूंगी।
रहो न यहीं, जो भी काम करना है, अब करो न यहीं
हर दिन होगी होली, हर रात दीपावली मैं मनाऊंगी।
जब भी परदेश जाने की बात करोगे, मैं भी जाऊंगी
बाहों में भरकर गले से लिपटकर, मैं तुम्हें मनाऊंगी।
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@मौलिक रचना घनश्याम पोद्दार
मुंगेर