#कविता//होली मुबारक
?दोहे?
रीत प्रीत होली लिए , ओज मौज के रंग।
कच्चा डालो रंग तन , पक्का हो मन संग।।
खेल मेल उत्साह का , मद हद में शालीन।
होली ऐसी खेलिए , भरदे भाव नवीन।।
?चौपाइयाँ?
रंग बिरंगा उत्सव आया।
नर नारी में ओज जगाया।।
मीठी बोलें सब ही बोली।
रंग लगाएँ आयी होली।।
इंद्रधनुष सम मौसम शोभित।
जनमन को करता ये मोहित।।
रंग बिरंगी भर पिचकारी।
इक दूजे पर जाए मारी।।
जाति धर्म का खेल नहीं है।
मानवता का मेल यही है।।
हिंदू मुस्लिम सिक्ख इसाई।
गले मिलें कह हम सब भाई।।
ऊँच नीच का भेद भुलाए।
होली सबको एक बनाए।।
रंग अनेक सभी सुंदर हैं।
भाव सभी के शुभ अंदर हैं।।
होली हरे बुराई मन की।
फागुन सम शोभा हर जन की।।
चहुँ दिशि ज्यों पुष्प सुरभि भरते।
रंग गुलाल उड़े उर हरते।।
होली सच की नितदिन खेलें।
रीत प्रीत की शिक्षा लेलें।।
रंग खुशी है जल निर्मलता।
तन छूते भरने पावनता।।
?कुंडलिया?
होली राधा श्याम सी , खेल प्रेम के संग।
अमर प्रीत गाथा कहे , सदियों पुलकित अंग।।
सदियों पुलकित अंग , अभीरा करदे तन मन।
स्नेह – सुरा का स्वाद , पिये प्याले भर हरजन।
सुन प्रीतम की बात , रंग की निश्छल बोली।
बद को शुभ हर वर्ष , बनाने आए होली।
?रोला?
होली का त्योहार , करे मस्ती का मौसम।
ढोल नगाड़ा नाद , सुनें झूम उठे आलम।
बरसे रंग गुलाल , बनें जोकर नर नारी।
सम सूरत हर देख , लगे है छवि अति प्यारी।
?सोरठा?
कविता मन रस वीर , अलंकारी तन खिलता।
रंग लगा मुख धीर , गले होली में मिलता।।
?छप्पय छंद?
होली खेलें लोग , उमंग लिए तन मन में।
वैर भाव सब भूल , मिलें जन अपनेपन में।
चाल नयी है आज , बोल हैं मीठे सबके।
जश्न प्रीत का एक , मीत बंदे सब रबके।
गीत सुरीले होली लिए , शोभा फागुन मास की।
रंग बिरंगी गुलशन लगे , रीति प्रीत ये हास की।
?रुबाइयाँ?
भेदभाव को भूलें यारों , इक हो जाएँ होली में।
गले मिलें मिलके संग चलें , मिस्री घोलें बोली में।
स्नेह-सुरा का पान करें हम , मान करें इक दूजे का;
चाहत के सोपान चढ़ें हम , ख़ुशियाँ आएँ झोली में।
हार बुराई की होती है , सच तो हरपल जीता है।
रावण कंश मिटे धरती से , अहं सभी का बीता है।
मिला प्रकृति से उपयोग करो , ज़मा कहाँ ले जाओगे;
गया सिकंदर खाली हाथों , भरा कलस जल रीता है।
लाल गुलाबी पीला नीला , रंग और भी जैसा हो।
हृदय-प्रेम को मिला लगाना , जैसे को ही तैसा हो।
प्रेम इश्क़ मालिक को प्यारा , उसको प्यारा कब हारा;
सदा प्रेम पर मेहर बरसे , टूटे भ्रम भी कैसा हो।
?आर.एस.’प्रीतम’?
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