होली की बोली
होली नही हुँकार है
बस दो दिनों का प्यार है
शुभकामना देने वालो कि बाजार है
फिर दुश्मन हजार हैं
और नही शोषक सरकार है
ऊपर से महंगाई की मार है
पेमेन्ट नही हुआ और भी लाचार हैं
घर वाली को छोड़ बगलवाली से आँखे चार है
लाल पीली रंगों से अच्छा साली का अचार है
पुआ पूड़ी छोड़ मटन चिकेन पर मार है
होली के साथ साथ चुनाव का प्रचार है
बस दागी दबंगो का बहार है
चोर फ़रार खड़ा चौकीदार है
कुछ लिखने के लिए कलम तैयार है
मन बेक़रार हुआ क्योंकि होली का खुमार है
सिर्फ़ व सिर्फ़ आपका इंतजार है ।
होली में खाली होगी झोली
Sahityakarsahil