होली का त्यौहार
होली का त्यौहार
प्यार, प्यार, प्यार
छंदों की बौछार
मानव
14 मात्रा 3चौकल एक गुरू
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तुम गईं छोड़ कर जबसे,
मैं आश लगाये तबसे ।।
आने की राह निहारूँ।
मन को समझा पुचकारूँ।।
पर बोझ न दिल का घटता ।
जैसे तैसे दिन कटता ।।
छाते दहशत सन्नाटे ।।
हर रात सांप सी काटे ।।
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शृंगार
16 मात्रा आदि में त्रिकल,
द्विकल अंत में गुरू लघु
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याद में बहते आँसू नैन।
नहीं दिन रात पड़े है चैन।।
झूलती नजरों में तस्वीर ।
पड़ोसिन भाभी देतीं धीर ।।
ताटंक
16/14 अंत में 3 गुरू
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कोरोना की दहशत तेरे,
दिल में अभी समानी है ।
इसीलिए दूरी की छतरी,
तूने अबतक तानी है ।
बाग बगीचे महक रहे हैं,
कोयल हुई दिवानी है ।
भौंरे तितली बता रहे हैं,
*यह ऋतु गजब सुहानी है ।
तूने अबतक इस बसंत की,
कीमत ना पहचानी है ।
मेरी इस बूढ़ी काया में,
आई पुनः जवानी है ।
अरमानों के सूख न जायें,
आकर फूल खिला जा तू ।।
इन अधरों को सूप रूपका,
आकर अभी पिला जा तू।।
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पंच चामर 16वर्ण
ज0र0 ज0र0 ज0गुरू
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खिले खिले गुलाब दे रहे सुझाव सार का ।
बसंत झूम झूम के पढाय पाठ प्यार का ।
मिलो मिलो गले मिलो कहे तरू चढ़ी लता ।
धरा सजी हरी हरी रिझा रही छटा बता ।
गोपी
रंग की भरकर पिचकारी ।
पास होली आई प्यारी ।।
सभी के माथ गुलाल लगे ।
पराए लगते सगे सगे ।।
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अरिल्ल 16
होली ऐसी छटा दिखाती ।
चित्र कला आकर फैलाती ।
लोग कला अपनी दिखलाते।
खजुराहो कोणार्क बनाते ।।
पद्धरि
2+8+3+3
जीजा साले का संग देख ।
देवर भाभी के ढंग देख ।।
करते छोरे हुड़दंग देख ।
बूढ़े भर रहे उमंग देख ।।
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विजात छंद
1222 1222
करो कुछ याद वे रातें ।
हुईं जब भोर तक बातें ।।
जवानी की बढ़ीं शाखें ।
लड़ीं कालेज में आँखें ।।
नहीं पछताव हीये में ।
हुए थे फेल बी ए में ।।
पिता की डाँट के डर से।
भगे भोपाल तुम घर से।।
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कुण्डली
होली की हुड़दंग में, सबके फरकत अंग।
हुरयारे हरकत करें,डाल डाल कर रंग।
डाल डाल कर रंग, छबीले छोरा छोरी।
छुप छुप छटा दिखाँय,चितेरे चोरा चोरी ।
भूल जायँ सुधि,कभी,-कभी चुनरी चोली की।
मल मल गाल गुलाल, मजा लूटें होली की।।
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विधाता छंद 14+14
1222 * 1222
मनायें पास आओ तो,
सुहानी शाम होली में ।
लगा लें साथ अधरों से,
जवानी जाम होली में ।
जमायें रंग मयफिल में,
तराने प्यार के छेड़ें ,
गुलाबी गाल पै लिख दें,
गुरू का नाम होली में ।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
2/3/21