होली कान्हा संग
मन-आंगन गोकुल-वृन्दावन बनाइये,
होली कान्हा-ग्वालों संग झूमकर मनाइये।
हृदय-चुनरी भक्ति-प्रेम रंग में डुबाइये,
होली राधा-सखियों संग नृत्य कर मनाइये।
तान मुरली की मधुर गूजेंगी कानों में,
जग भूल राधेश्याम की रटन लगाइये।
स्वाद माखन-मिश्री का मिलेगा जीवन में,
शीश बांके-बिहारी के चरणों में झुकाइये।
पार फागुन में “कंचन”हो जाओगे भव-सिन्धु ,
हंसी-ठिठोली संग मिलजुल होली मनाइये।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार) ।
दिनांक :- ०१/०३/२०१८.