होली एक रूपक
हिरण्यकश्यप
शंका का प्रतीक है
प्रह्लाद श्रद्धा का
पर्याय है
जब तलक आप
संदेह के वश
श्रद्धा के अंकुर को
पहाड़ो से गिरा
पत्थर से दबाओगे
पानी मे डुबाने
या आग में जलाने
का प्रयास करोगे
वह और बलवती होगी
देखने मे असहाय
पर प्रतिक्रिया स्वरूप
और भी मजबूत होगी।
शंका सदा भयभीत
रहती है
ऊपर से देखने मे
बलशाली
पर अंदर से निर्बल
दिखती है।
श्रद्धा हँसती
खिलखिलाती अपने
ईष्ट में विश्वास के
साथ उनका भजन
करती रहती है
श्रद्धा का बेशक कुछ
नही होगा
उसे नाहक जलाने के
प्रयास में शंका का
हाथ के साथ
उसकी सहबाला तृष्णा
होलिका का बस
दहन होगा
अंत मे शंका का भी
दम्भ के पत्थरो से
टकरा कर
सर्वनाश होगा।
श्रद्धा कल भी अमर थी
आज भी है और
निरापद निर्मेष
कल भी अमर रहेगीं।
निर्मेष