होलिका दहन
।।होलिका में दहन करो।।
सरसों के पीलें फूलों से धरती अम्बर छाई हैं
नव बसंत रस प्रकृति लेकर फ़ाग महीना आई हैं
होली पूर्व हृदय प्रस्फुटित,बीते बरस का वमन करो
शोक विशाद व्यथित हृदय को होलिक में दहन करो
नए साल का नया महीना,लेकर आई मनहर होली
कर्कश तीखें स्वर को त्यागों,बोलों सबसें अमृत बोली
नईं पर्व पर नईं कसम ले,नए दायित्व का वहन करो
सारा ढोंग प्रपंच हृदय का,होलिका में दहन करो
खेलों कुदों मिलकर सारे,लेकर रँग ग़ुलाल अबीर
मिटाकर भेदभाव को सारे,खींचो एकता की लक़ीर
क़भी बिखरने तुम मत देना,इस बात को ग्रहण करो
ऊंचनीच सब छुआछूत को, होलिका में दहन करो
मानवता के रँगों से धरती अम्बर केसरिया हो
राग फ़ाग से आनंदित अपनी सारी दुनियाँ हो
हमसें कोई कष्ट नहीं हो,सबका झुक कर नमन करें
शान घमंड अभिमान को अपनें, होलिका में दहन करें
सबकों एक करनें को आज केसरिया का पवन बहें
जियें और जिनें दे सबकों, इस बात का जतन करें
मानवहित उठाने ख़ातिर,कुछ कष्टों का सहन करें
ईर्ष्या द्वेष नफ़रत हिंसा को, होलिका में दहन करें ।।
©बिमल तिवारी “आत्मबोध”
देवरिया उत्तर प्रदेश