होनहार कवि
होनहार कवि “ललित कुमार” की फुटकड़ रचनाएँ
रागनी-1
हो बन्दे ! मतकर मान-गुमान, या जिंदगी सुपने कैसी माया |
ऐसा जग मै कौण जण्यां, जो नहीं काळ नै खाया || टेक ||
ब्रह्मा जी पै वर लेकै, हिरणाकुश नै अहंकार करया,
12 मिह्ने, दिन-रात मरुँ ना, हिरणाकुश नहीं डरया,
हरि नै नरसिंहां रूप धरया, हिरणाकुश मार गिराया ||1||
उग्रसेन महात्मा कै, एक पैदा खोटा अंश हुआ,
कालनेमि के रजवीर्य से, पवन रेखां कै कंश हुआ,
वो मथुरा मैं विध्वंश हुआ, हरि नै श्याम रूप बणाया ||2||
अहंकार नै मति मारी, उस दशानन रावण की,
वो विद्वान भी गलती करग्या, सीता नै ठावण की,
सुणी जब काळ के आवण की, घबराग्या विश्वासुर का जाया ||3||
गुरु ब्रहस्पति का मान मारया, इंद्र विश्वेबिस नै,
गुरु बिना ज्ञान नहीं,सुमर ललित जगदीश नै,
दे मिटा ज्ञान की तिस नै, तेरी आनंद होज्या काया ||4||
रागनी-2
सिणी, सांपण, बीर बिराणी, ये तीनूं-ऐ बुरी बताई |
नर, किन्नर, देवता मोहे, होवै खोटी बीर पराई || टेक ||
त्रिया कारण त्रिलोकी नै, लित्तर गांठे वन मैं,
श्रध्वान का ध्यान डीग्या, उर्वशी बसगी मन मैं,
बीर के कारण विष्णु कै, लागी लाग बदन मैं,
शीलनदी पै नारद का होया, मुंह बंदर का छंन मैं,
चन्द्रवती पै हुआ आशिक ब्रह्मा, खुद बेटी पै नीत डिगाई ||1||
अहिल्या पै होया आशिक, इंद्र देवों नै दुद्कारया,
हूर मेनका नै विश्वामित्र, दे धरती पै मारया,
इन्द्राणी कारण नाहुष भूप भी, स्वर्ग तै नीचै डारया,
बीर के कारण बाहु का सिर, परशुराम नै तारया,
वेदवती तक रावण मरग्या, जो बणी जनक की जाई ||2||
सिंध-उपसिन्ध माँ जाए मरगे, तिलोमना पै डीग्या ध्यान,
चन्द्रवती नै उद्दालक का, ख़ाक मै मिलाया ज्ञान,
त्रिया कारण लागी स्याही, चन्द्रमा की बिगड़ी की श्यान,
कुब्जा परी नै श्री कृष्ण मोह्या, उस योगी पुरुष का घटया मान,
महाभिषेक भी स्वर्ग तै ताह्या, मन बसगी गंगेमाई ||3||
कहै ललित बीर के कारण, चढ्या भार ब्रहस्पति पै,
भस्मासुर भी भस्म होया, होकै आशिक पार्वती पै,
उमा कारण बलि मरग्या, पड़े पात्थर मूढ़मती पै,
द्रोपदी नै कीचक मरवाया, वो डिगग्या नार सती पै,
कामदेव मै फंस पाराशर नै, तप की बलि चढ़ाई ||4||
रागनी-3
तूं धर्मराज तुल न्याकारी, राजा क्यूँ अनरीति की ठाणै |
महारै समय का चक्कर चढ्या शीश पै, हम नौकर घरां बिराणै || टेक ||
पर त्रिया पर धन चाहवैणियां, नरक बीच मै जा सै,
तूं राजा होकै अनरीत करैं, उस धर्मराज कै न्या सै,
तमित्र नर्क, कुट कीड़यां की, उड़ै चूंट-चूंट कै खां सै,
28 नर्क गिणे छोटे-बड़े, दक्षिण दिशा मै राह सै,
न्यूं मेरी छाती मै घा सै, भाई हम बेवारस कै बाणै ||1||
महाराज राज मै दासी-बांदी, हो करणे नै सेवा,
जो पर त्रिया नै मात समझते, ईश्वर तारै खेवा,
काम, क्रोध, मद, लोभ, तजे तै, मिलै आनंदी सुख मेवा,
उतर मै मिलै स्वर्ग द्वारा, परमपदी सुख देवा,
तूं होरया ज्यान का लेवा, क्यूँ सहम तेगी ताणै ||2||
तूं बदी चाहवै, कुबध कमावै, हो पन्मेशर कै खाता,
तनै दुःख होज्या, तूं कती खोज्या, ओड़ै तेल तलै सै ताता,
जा खोड़ सूख, या लागै भूख, यो दर्द देख्या ना जाता,
मै रटूं राम नै, कहूँ श्याम नै, वो ईश्वर भी ना ठाता,
तेरा बाप बराबर समझै नाता, न्यूं आँण-काण नै जांणै ||3||
धन, धरती और बीर, बख्त बिन रुलते फिरया करैं,
क्यूँ करैं भूप अनरीत जाणैक, उस हर तै डरया करैं,
धर्म-कर्म नै जाणनिये, के अधर्म करया करैं,
गऊँ, ब्राह्मण, सतगुरु सेवा तै, बेड़े तिरया करैं,
यो ललित कुमार न्या करया करैं, कती दूध और पाणी छाणै ||4||
रागनी -4
बिजली कैसे चमके लागै, रत्ना के म्हा जड़ी हुई |
चन्द्रमा सी श्यान हूर की, फुर्सत के म्हा घड़ी हुई || टेक ||
घड़दी सूरत, प्यारी मूरत, चंदा पुर्णमासी का,
पड़ै नूर, भरपूर हूर, योवन सोला राशि का,
रंगरूप, सूरज की घूप, इस सोने की अठमासी का,
यो लागै लाणा, मैला बाणा, भेष बणारी दासी का,
यो चेहरा तेरा उदासी का, बिन मोती माला लड़ी हुई ||1||
या जबर जवानी जोबन की, कोन्या झूठ कती परी,
अग्निकुंड सा रूप तेरा, तूं दक्ष घरा सती परी,
तूं दासी बणकै करैं गुजारा, बणै कीचक तेरा पति परी,
के ब्रह्मा की ब्राह्मणी, के कामदेव की रती परी,
तू शिवजी की पार्वती परी, कैलाश छोड़ आ खड़ी हुई ||2||
यां कंचन काया चार दिन की, फेर के बितैगी तेरे पै,
कमर के ऊपर चोटी काली, जणू विषियर नाचै लहरे पै,
सिंध-उपसिन्ध ज्यूँ कटकै मरज्या, तेरे तिलोमना से चेहरे पै,
महराणी का दर्जा देकै, मैं राखूं तनै बसेरे पै,
रहै 105 तेरे पहरे पै, क्यूँ दासी बणकै पड़ी हुई ||3||
कांची कली नादान उम्र, योवन सतरा-अठारा सै,
तेरी दासी-बांदी टहल करैंगी, लग्या मृगा कैसा लारा सै,
कणि-मणि और मोहर-असर्फ़ी, बरतण नै धन सारा सै,
कहै ललित बुवाणी आळा, तेरा गुर्जर गैल गुजारा सै,
जड़ै स्वर्ग सा नजारा सै, फेर क्यूँ जिद्द पै तूं अड़ी हुई ||4||
रागनी -5
मै निर्धन-कंगाल, तूं राजा रायसिंह की जाई |
इस टुट्टी छान मै करूँ गुजारा, क्यूँ महल छोडकै आई || टेक ||
कित कंगले संग होली बीना, तनै सखी देंगी ताने,
तेरे बणखंड के म्हा पैर फुटज्या, लाग-लाग कै फाने,
उड़ै पीण-नहाण नै एक तला, आड़ै बण रे अलग जनाने.
मेरा अन्न-वस्त्र का टोटा सै, तेरै भरे न्यारे-न्यारे खान्ने,
थारै धनमाया के भरे खजाने, मेरै धोरै ना एक पाई ||1||
उड़ै बियाबान मै दुःख पाज्या, ना सुख महला आळे,
तूं राजा की राजकुमारी, मेरै संग झाडैगी जाळे,
तेरी दासी-बांदी करैं टहल, महल मै नौकर रहवै रुखाले,
टोटा-खोटा हो बुरा जगत मै, मेरे बख्त टलै ना टाले.
तेरे पिता नै कर दिए चाले, निर्धन गेल्या ब्याही ||2||
सोने की अठमासी बीना, बणखंड के म्हा जरया करैगी,
आड़ै छत्तीस भोजन मिलै खाण नै, बण मै भूखी मरया करैगी,
ओड़ै शेर, बघेरे, भालू बोलै, बियाबान मै डरया करैगी,
दुःख पाज्या तेरी निर्मल काया, जब शीश लाकड़ी धरया करैगी,
तूं नैनां नीर भरया करैगी, तेरी कोए ना करैं सुणवाई ||3||
बड़े-बड़ेरे कहया करैं सै, ना टोटा किसे का मीत बीना,
हिणै कै घर सुथरी बहूँ, कोए खोटी धरले नीत बीना,
आग-पाणी का ना मेल बताया, तूं कितै ल्याई या रीत बीना,
गाम बुवाणी चली जाईये, करकै गुर्जर तै प्रीत बीना,
कहरया तनै ललित बीना, मत लावै चाँद कै स्याही ||4||