होते हैं कुछ उसूल भी व्यापार के लिये
होते हैं कुछ उसूल भी व्यापार के लिये
अख़लाक़ शानदार हो किरदार के लिये
इक़रार मुद्दतों में हुआ फ़ासला रहा
तड़पे बहुत हैं प्यार के इज़हार के लिये
जा तो रहा है साथ में लेकिन नहीं है ख़ुश
राज़ी हुआ है बाद में उसपार के लिये
दुनिया की शै हरेक ही तो बाकमाल है
लेकिन नहीं बनी है वो बाज़ार के लिये
आसां नहीं है राह कोई भी सफ़र में तो
मुश्किल नहीं है राह समझदार के लिये
सुनता यहाँ पे कौन है मजबूर की सदा
मुश्किल यहाँ तमाम हैं लाचार के लिये
मुश्किल बहुत है वक़्त से पहले हुआ न कुछ
चलना पड़ा है तेज़ तो रफ़्तार के लिये
निर्दोष या ग़रीब हो धनवान आदमी
गर्दन सभी हैं एक सी तलवार के लिये
आलात ज़िन्दगी के वफ़ा प्यार सब्र हैं
‘आनन्द’ नेकियाँ हैं वफ़ादार के लिये
शब्दार्थ:- आलात = औज़ार
– डॉ आनन्द किशोर