होती क्या है काया?
ये शरीर जो है सबके पास बनकर सबका निवास
इस शरीर को चाहता है तो क्या तू पाएगा
सुन! जन्मा है ये शरीर मिट्टी से,समझ तू
ये शरीर तो एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा।
इस शरीर को चाहता है तो क्या तू पाएगा
ये शरीर तो मिट्टी से है बना,ऐ..मनुष्य
ये शरीर तो एक दिन मिट्टी में ही मिल जाएगा।
यही मैं सबको समझाता रहा,गीता का मैंने उपदेश दिया
होता है क्या धर्म समझाने हेतु मैंने पूरा संसार रचा, फिर मिटाया
चाहता तो एक चुटकी में सब यूंही बदल देता मैं
परंतु जन्म लेकर मनुष्य का मैंने गीता का ज्ञान सुनाया।
मैं कृष्ण मनुष्य नहीं इश्वर हूं, मैं ये बात भूलकर आया
हर रिश्ते, हर धर्म अपनी निष्ठावानता से मैंने निभाया
फिर भी ना समझा तू मनुष्य होती क्या है काया?
जन्म लेने और मरने का धर्म ही सिर्फ शरीर ने है निभाया।
बाकी सब इस दुनिया में जो है और था वो बस थी मेरी माया
तू क्या जाने मनुष्य कैसे-कैसे मनुष्यता को है मैंने बचाया
कभी राम बन खाए प्रेम से जूठे बेर शबरी के हाथों
तो कभी कृष्ण बन सुदर्शन चक्र भी मैंने हाथों में था उठाया।
तू क्या जाने मनुष्य? ,
कैसे-कैसे मनुष्यता को है मैंने बचाया।।