होठो की बंसी
होठो की बंसी
तू ही माला, तू ही मंतर, तू ही पूजा, तू ही मनका
का कहूं के, मेरी धड़कन पे गंगाजल सी प्रीत लिखूं।
तू है मधुबन में, तेरे होठों पे मुरलीया, सुन मेरे कान्हा
कैसे मै इन अधरों पर मेरे मधुर बंसी का गीत लिखूं
तू है सृष्टि में,तू है दृष्टि में,तू ही काल कराल वृष्टि में
मैं निपट अकेली इस जग में कैसे विरह की पीर लिखूं।
मन की बंजारन, तन से भी हुई बावरी, ओ मेरे मोहन,
कैसे अपनी भूली सुधियों पे बहते अश्रु का नीर लिखूं ?
तू ही रैन, तू ही मेरा चैन, तू ही मेरा चोर, तू चितचोर,
बहती यमुना सी आकुल हदय की कैसे धीर अधीर लिखूं।
तू ही नंदन, तू ही कानन, तू ही वंदन, सुन मेरे कृष्णा,
कैसे मेरे निर्झर नैनो मे तेरे दर्शन की पीर अधीर लिखूं ?
तू ही सासों में, तू ही रागों मे, तू ही संगीत तू मेरे साजो में,
का कहूं की,मुरलिया सुध बुध बिसरायी मै हार या जीत लिखूं।
छू लूं तेरे चरण, मै तेरी शरण, कर आलिंगन, ओ मेरे श्यामा।
तेरे होठो की बंसी बन बन जाउँ और शाश्वत संगीत लिखूं।
……डा. निशा माथुर –( स्वरचित)