होचपोच संसार
होचपोच संसार
दुखियारा मन टीसता,रिसता दर्द अपार।
मौज कौन किसकी सुने, दुखियारा संसार।।
दुख के बादल घिर गए,बची न कोई आस।
बैरी अपने सब हुए, टूट गया विस्वास।।
दुख के बदले सुख दिया,करम कमाया आप।
मौज जगत अब वो नहीं,जो हर ले संताप।।
दुखी पराए सुख्ख से,सुखी पराई पीर।
ये जग घाणी तेल की,करे कचूमर धीर।।
मुठ्ठी भर- भर बांटते,घर-घर जाकर दर्द।
सब मुरझाए जी रहे,औरत हो या मर्द।।
जो अपने में मस्त है,उसको करते पस्त।
टांग खिंचाई अनवरत,स्नेह मिनारें ध्वस्त।।
हर घर आकर बस गए, तकनीकी के दास।
करमहीन आलस भरे,निसदिन रहें उदास।।
गैर जरूरी कर रहे, मोबाइल का यूज।
जीवन लगता बोझ सा, रहते हैं कनफ्यूज।।
अंग सभी उन्मुक्त हैं,गए भरोसे टूट।
अपने मतलब के लिए, खूब मचाते लूट।।
परिभाषाएं छिन्न हैं,खिन्न हो गए मीत।
मौज भोग के लालची,खुद से ही भयभीत।।
समझ नहीं पर समझिए,इस जीवन का सार।
मौज भरोसा चाहिए, महके घर परिवार।।
कर्म भरोसा नेह बिन,बिखर रहे परिवार।
तकनीकी के जाल में, उलझ गया संसार।।
मिले नहीं फिर जिंदगी,लाख जतन भी ख़ाक।
मौज मनुजता हो गई, कलयुग बीच मज़ाक।।
पढ़े-लिखे इस लोक में, नहीं बचे संस्कार।
न गुण न ही गुणकरी,होचपोच संसार।।
विमला महरिया “मौज”