बोर्नविटा
मेरा बेटा ओजस्वदीप तेरह साल का हो गया है। बात उस समय की है जब वो दो साल का था और तुतलाते हुए अपने आर्ग्युमेंट्स करता था। मैं राजकीय विद्यालय में अध्यापिका हूं। गर्मियों के दिन थे, इसलिए घर जल्दी आ जाती थी क्योंकि विद्यालय समय सात से बारह बजे तक का ही था। दोपहर में लगभग डेढ़ दो बजे खाना खाकर, मैं बेटे को बगल में लिटाकर आराम करने लगी और उसकी मासूमियत भरी बातें सुनने लगी। कब आंँख लग गई पता ही नहीं चला! इसी बीच बेटा बैड से नीचे उतर कर कमरे से बाहर निकल गया और खेलते खेलते रसोईघर में चला गया। उसने प्लेटफार्म के सहारे पीढ़ा सरकाया और ऊपर चढ़ गया। वहां उसे खाने पीने की चीजें मिल गईं। कुछ खाया कुछ बिखेरा। संभवतः अचानक ही उसकी नजर बोर्नविटा के डिब्बे पर पड़ी होगी! उसने खिड़की में लगे मनीप्लांट को देखकर कुछ सोचा होगा! छोटे से पोट में लगे मनीप्लांट में उसने सारा बोर्नविटा उंडेल दिया! साथ ही दूध का भगोना भी उसमें उलट दिया और बेसिन से पानी ले लेकर उसे भरपूर पिलाया तथा स्वयं भी उस घोल में लिपट चिपट कर देखने लायक हो गया। अचानक मेरी आँखें खुली तो मैंने देखा कि बेटा मेरे पास नहीं है! उठकर दौड़ी तो देखती हूं रसोईघर में प्लेटफार्म पर बैठा,कुछ करने में मशगूल है! मैंने कहा क्या कर रहे हो यहां!? “माँ! पेड़ले को बोनबिता पिलाऊँ! देखो ये बदा हो गया है!” तुतलाते हुए उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुरा उठी! साथ ही उसकी बाल सुलभ गतिविधि और संवेदनशीलता से प्रभावित भी हुई क्योंकि मैं रोज उसको दूध में मिलाकर बोर्नविटा पिलाती और कहती कि,”बेटा पीओ-पीओ! इसे पीकर बड़े हो जाओगे! पापा जितने बड़े!” संभवतः मेरी इसी बात से उसने सीखा होगा कि मनीप्लांट छोटा है,इसे बोर्नविटा पिलाकर बड़ा कर देता हूं!
मेरा बेटा प्रकृति के बहुत नजदीक रहता है! पेड़ पौधे और जीव जंतुओं से प्यार करता है! जब वो बात याद आती है तो घर ठहाके गूँजने लगते हैं और बेटे की प्रशंसा भी होती है।
विमला महरिया “मौज”
सीकर राजस्थान