है सच में देश महान यही हम देख रहे हैं?
वादों के पूल पर बैठी सरकार यही हम देख रहे हैं,
महंगाई की बढ़ती नितदिन मार यही हम देख रहे हैं,
क्या सच में आये हैं अच्छे दिन जीवन में ?
गरीबी से है जनता लाचार यही हम देख रहे हैं,
गांव के कुछ छप्पर वैसे ही टूटे के टूटे,
मुखिया जी के नए बन गये हैं घरद्वार यही हम देख रहे हैं,
नहरों का जल बहता बस कागज़ पर ही,
खेतो में जल बिन सूख गये हैं धान यही हम देख रहे हैं,
मरते रोज किसान यही हम देख रहे है,
है सच में देश महान यही हम देख रहे हैं?