है रूह थक गया!
तुमने जलते दिए, क्यों फिर बुझा दीये,
अभी तो बचा रात का, लम्हा बहोत है।।
गुफ्तगू कर लो हमसे, सिर्फ सहर तक,
आज कल हम कसम से, तन्हा बहोत हैं।।
है जिस्म तो निढाल, मन शांत पड़ा है।
पर दिल बेचैन, बातें गुलफाम करेगा।।
सोच ले ये भी तो है, परेशान इश्क़ में।
ये हरकते कई सारे, खुलेआम करेगा।।
कभी छेड़ेगा सताएगा, चुगली भी करेगा।
कभी ले नाम तेरा तुझे, सरेआम करेगा।।
पर जो भी करेगा, इतना भरोसा रखना।
न बेवफ़ा न दागदार, न बदनाम करेगा।।
तूने अभी तक दिए, जलाये चाहतो के।
कभी तो सोये अरमां, जगा के देखना।।
बा कसम की तुझे, शर्म आती है बहोत।
एक बार खुद को, आजमा के देखना।।
फिर भी अगर तुझे, हम पशन्द नही तो।
सुन यहीं खत्म, किस्सा तमाम करेगा।।
जा तूँ जाकर कहीं, और महफिले जमा।
है रूह थक गया, कब्र में आराम करेगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १७/१०/२०१९ )