है यह भी एक सत्य
सत्य खोज का मिला संज्ञान,
चंचल चित है विषय से अंजान।
है जीवन में उलझे कई जाल,
तिलक लगाऊं किसे बना भाल।
है जिज्ञासा लिखूँ उत्कृष्ट कविता,
विपक्ष ओर खडी़ वार्षिक परीक्षा। ,
मूल्यांकन हेतु पुस्तिका का भंडार भरा,
करूँ किसे ग्रहण- तिरस्कार बता जरा।
है सत्य का चिंतन विषय अनुपम,
है सत्य परमार्थ की भाव संपन्न।
है सत्य, सनातन, शाश्वत विषय,
यह मुक्ति- मोक्ष प्राप्ति का विषय।
पर, तत्व न मिलते किसी बाजार,
न ही मिलते यह दिन दो- चार।
सत्य पथ ही है , सत्य का आधार,
पंथी हीं जाने इसके व्यवहाराचार।
कर्म पथ देता चिंतन का समय कहाँ,
स्वार्थी मन उपजाए परमार्थ जहाँ।
सांसारिक जीवन बिकी है भांति भांति,
लोभ, मोह, द्वेष, विकार की पांति।
जब मन अंबर के छटेंगे काले मेह,
तब सिथित हुए रहेंगे माटी के देह।
न हीं होगी तत्वदर्शी प्रतियोगिता,
न हीं रहेगी मृत जीवन की उपयोगिता।
जब जर-तन के होगें स्वयं क्षरण,
तो किस- किसको दोगे स्पष्टीकरण।
मिला जग में लोक- परलोक की सौगात,
निर्भर है देता मन निष्पक्ष किसका साथ।
उसका क्या❓है वह चिड़िया आली,
उड़ जाएगी फुर्ररर डाली डाली।
फिर भटकेगा किस किस बाग,
जाग मनुज तू अब भी जाग।
लिख धरा की अपनी सामर्थ्य कविता,
जो हो परब्रह्म की स्फुटित सविता।
मत सोचो मिले मुझे भी कोई पहचान,
है यहाँ क्या —————।
उमा झा🙏