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11 Jan 2021 · 1 min read

कोरोना

ग़ज़ल
है बेबसी कि तेरे घर भी आ नहीं सकते।
और अपने घर भी तुझे हम बुला नहीं सकते।।

मिला है एक ज़माने के बाद यार हमें।
बढ़ा के हाथ गले भी लगा नहीं सकते।।

हिजाब में है तबस्सुम लबों की सुर्ख़ी भी।
कि लुत्फ़ हुस्न का तेरे उठा नहीं सकते।।

बड़ी अजीब ख़मोशी है आज चारों तरफ।
हम अपने घर कोई महफ़िल सजा नहीं सकते।।

ये दूरियां न कहीं दिल में फासले कर दें।
यहीं तो अपनी है दौलत गँवा नहीं सकते।।

बनी है दुश्मन-ए-जां ये वबा तो कोरोना।
लड़ेंगे इससे भी हम सर झुका नहीं सकते।।

निकालना ही पड़ेगी कोई तो राह “अनीस”।
कि ज़ीस्त क़ैद में यूं तो बिता नहीं सकते।।
– अनीस शाह “अनीस”
साईंखेड़ा नरसिंहपुर म प्र मो 8319681285

3 Likes · 27 Comments · 386 Views
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