है ज़िन्दगी बस ज़िन्दगी
* है ज़िन्दगी बस ज़िन्दगी *
हरिगीतिका छंद (मापनी- २२१२ २२१२ २२१२ २२१२)
~~
है जिन्दगी बस ज़िन्दगी हो आम की या खास की।
सब मंजिलें पा कर रहें हों दूर की या पास की।
बिखरे मिलेंगे फूल भी कांटे मिलेंगे हर कदम।
विचलित नहीं होना कभी स्थितियां बनें परिहास की।
कुछ लोग सहयोगी बनेंगे कुछ मगर अवरोध भी।
फिर कल्पना करते रहें कटुता में’ आज मिठास की।
मौसम बहारों का सभी को खूब भाता है मगर।
करते रहे बातें सभी हम हर्ष की उल्लास की।
सबको मिले हर क्षेत्र में अब प्रगति के अवसर यहां।
होती रहे दृढ़ भावनाएं आपसी विश्वास की।
जब भी बरस जाएं धरा पर मेघ उम्मीदों भरे।
चिंता नहीं हर वक्त बढ़ती जा रही इस प्यास की।
बिखरी महक हर ओर देखो फूल जब खिलने लगे।
फिर आ गई सबके लबों पर बात है मधुमास की।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)